Vinita gupta

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वट सावित्री अमावस्या

वट सावित्री अमावस्या 
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मेरा सुहाग  माथे की, 
लालिमा न समझना।
दीपित है सूर्य सा,
छोड़े न चमकना।

यदि आंच आ गई तो,
बन जाऊंगी बज्र मैं,
लड़ जाऊंगी यमराज से
भूलूंगी सब्र मैं,
बरसों की तपस्या है,
जानूं न भटकना।
दीपित है सूर्य सा,
छोड़े न चमकना।।

पूजन करूंगी वट का,
दूंगी प्रदक्षिणा,
बांधूंगी धागा प्रीत का,
अक्षय हो दर्शना,
मांगूगी उम्र लंबी 
निर्जल उपासना।
दीपित है सूर्य सा,
छोड़े न चमकना।

पथ गामिनी हूं मैं,
अपने ही नाथ की,
होती न कभी दूर
परछाईं साथ की,
बिछ जाएं शूल कितने,
बिंध जाऊं मैं कितना।
दीपित है सूर्य सा,
छोड़े न चमकना ।।
मेरा सुहाग माथे की,
लालिमा न समझना।।

विनीता गुप्ता छतरपुर मध्य प्रदेश स्वरचित मौलिक

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